लेखनी प्रतियोगिता -29-Apr-2022नारी
तुमसे मैं परिपूर्ण हूं
नारी तुमको हर रूप में पाकर ,
मैंने खुद को पूर्ण किया।
बेटी रूप में तुमको पाकर ,
गर्व से मैं फुला ना समाया ।
मेरे घर आंगन की खुशबू,
मेरे दिल का टुकड़ा बन ,
दिल के बहुत करीब पाया।
बेटी तो है धन ही पराया,
ऐसा कहने वालों की सोच पर ,
मुझको बहुत तरस है आया ।
अरे बेटी तो वह अनमोल रतन हे,
जो दो कुलो को जोड़ती है।
बचाने कुलो की मर्यादा,
संयम ,क्षमा, शक्ति ,शील,
ममता अपनत्व से ,
दिलो की कडियां जोड़ती हैं।
त्याग उसका कितना है,
तुम ने समझ पाओगे ।
जाकर वह दूसरे घर ,
अमृत बेले बन जाती ।
जिन माता पिता ने जन्म दिया,
दूजो को अपनाती है।
धर्म ,रीति-रिवाज, तुम्हारे घर के,
सब वह निभाती है।
कदम कदम पे साथ हैं चलती,
तनिक नहीं घबराती है ।
बनकर पेड़ तुम्हारे घर का ,
घर आंगन खुशबू से महकाती है।
नाजुक सी कली किसी की
फूल बन तुम्हारे घर का
घर आंगन दमकाती हैं।
नाज करो तुम इन रिश्तों पर
माता ,बहन , सहचरी बन
तुम्हारा जीवन पूर्ण कर जाती।।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
Shnaya
28-May-2022 01:10 PM
बेहतरीन
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Reena yadav
23-May-2022 11:09 PM
👌👌
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ऋषभ दिव्येन्द्र
23-May-2022 11:00 PM
खूब लिखा आपने 👌👌
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